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दोस्ती और विश्वास

शायद वो मुझे समझ नहीं पाएगा,
या फिर शायद मेरा मज़ाक उड़ाएगा।
मुझे बताना भी नहीं है, कि मैं दुखी हूँ,
और ये दिखाना भी नहीं है।
कौन है जो बिलकुल खुश है?
मैं कोई अलग तो नहीं हूँ।
मैं फिर उसे अपना दुख सुनाऊँ,
मैं इतना कमजोर भी नहीं हूँ।

ऐसा मत सोचना दोस्त,
तू बहुत ज़्यादा खास है।
आख़िर कुछ कमाया जा सकता है दोस्ती में,
तो वो सिर्फ और सिर्फ विश्वास है।
तूने मौक़ा दिया जब भी मुझे,
मैंने कभी नहीं ठुकराया है।
कौन सा मैं याद रखने वाला हूँ,
कि तू रोते हुए कौन सी बार मेरे पास आया है।

मैं हमेशा साथ हूँ तेरे,
तू जब जैसे चाहे बात कर सकता है।
बात करने की हिम्मत न हो,
तो एक टेक्स्ट करना तेरा काम है।
आगे क्या करना है वो मैं देख लूँगा।

- सूर्यांशु

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